कैंसर नाम सुनते ही शरीर में एक सिहरन सी दौड़ जाती है। किसी अनहोनी एहसास जीवन की मुश्किलों से अधिक डरावना लगता है। दर्द, क्षोभ, ग्लानि दुःख और कष्ट के अनेक पर्याय एक साथ चेहरे पर आ कर चले जाते हैं।
कष्ट सिर्फ उस बीमार के शरीर नहीं, परन्तु उसके परिवार और निकट सम्बन्धियों सभी को होता है। पिछले ६ साल में विशेष इस क्षेत्र में जो की वात से सम्बद्ध है काम करते हुए करीब से इस दर्द को अनुभव किया है।
मेरा अनुभव brain, oesophageal (गले), lung (फेफड़े), और ovarian (अंडाशय) के कैंसर से जुड़ा रहा है। इन सभी परिस्थितियों में मैने पाया की आयुर्वेद में प्रयुक्त कुछ औषधियां ऐसी हैं जो कि रोगी को उसके कष्ट को सहने में आसानी करती हैं।
यह मेरा दुर्भाग्य रहा है कि मैने इन रोगियों को उनकी अंत-अवस्था में देखा और चाह कर भी अधिक कुछ नहीं कर सका, पर यह मेरा सौभाग्य भी रहा की मैं उनके दर्द को बाँट सका। शायद और पहले वह रोगी मुझे मिलते तो मैं कुछ और अधिक बेहतर कर पाता। पर मेरे अनुभवों ने जीवन को वह पहलू दिखा दिया जहाँ न मोह है न प्रेम। एक अजीब सा शून्य है पर भय नहीं, उन्माद नहीं; सिर्फ शान्ति।
मृत्यु का एहसास और उसकी अनुभूति तो नहीं की जा सकती पर जो मर रहा हो उसके भाव उस अनुभूति के एहसास का बोध करा सकते हैं। जिस किसी ने इस एहसास की अनुभूति की है वह शायद मेरी तरह भय, मोह, की मृगतृष्णा से अपने को आसानी से अलग कर ले जाता है। आखिर नश्वरता इस ब्रम्हांड का एक मात्र अटल सत्य भी तो है।
कष्ट सिर्फ उस बीमार के शरीर नहीं, परन्तु उसके परिवार और निकट सम्बन्धियों सभी को होता है। पिछले ६ साल में विशेष इस क्षेत्र में जो की वात से सम्बद्ध है काम करते हुए करीब से इस दर्द को अनुभव किया है।
मेरा अनुभव brain, oesophageal (गले), lung (फेफड़े), और ovarian (अंडाशय) के कैंसर से जुड़ा रहा है। इन सभी परिस्थितियों में मैने पाया की आयुर्वेद में प्रयुक्त कुछ औषधियां ऐसी हैं जो कि रोगी को उसके कष्ट को सहने में आसानी करती हैं।
यह मेरा दुर्भाग्य रहा है कि मैने इन रोगियों को उनकी अंत-अवस्था में देखा और चाह कर भी अधिक कुछ नहीं कर सका, पर यह मेरा सौभाग्य भी रहा की मैं उनके दर्द को बाँट सका। शायद और पहले वह रोगी मुझे मिलते तो मैं कुछ और अधिक बेहतर कर पाता। पर मेरे अनुभवों ने जीवन को वह पहलू दिखा दिया जहाँ न मोह है न प्रेम। एक अजीब सा शून्य है पर भय नहीं, उन्माद नहीं; सिर्फ शान्ति।
मृत्यु का एहसास और उसकी अनुभूति तो नहीं की जा सकती पर जो मर रहा हो उसके भाव उस अनुभूति के एहसास का बोध करा सकते हैं। जिस किसी ने इस एहसास की अनुभूति की है वह शायद मेरी तरह भय, मोह, की मृगतृष्णा से अपने को आसानी से अलग कर ले जाता है। आखिर नश्वरता इस ब्रम्हांड का एक मात्र अटल सत्य भी तो है।
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