Tuesday, December 29, 2015

IS THERE ANY END TO THIS QUACKERY???????????

Development of pharma industry has been backed by toutsmanship and favours.
when pharma companies became one too many, they started promoting favours to doctors.
when doctors ran out of favour they started incentivising medical stores.
in india majority medical store owners are non medico's, non-pharmacists, a sizeable number even non-graduates.
such unskilled labour is promoted and incentivised by pharma companies to drive sales.
isn't it plagiarism at the cost of human life? who is responsible to press the delete button, not known; however if a physician does the same as a medical store he is blamed for trying o earn too much and being unskilled!
perhaps yes, because he knows a little more and doesn't drive the medicine brands the same way!
IS THERE ANY END TO THIS QUACKERY???????????

IMPORTANCE OF ALOVERA IN PSORIASIS

सोरायसिस में घृतकुमारी का महत्व 

घृतकुमारी या आम प्रचलन में एलोवेरा  एक ऐसा पौधा है जो कि विशेषकर जल के अभाव में पलता और बढ़ता है।  इस कारण उसमें जल को संचित कर रखने की क्षमता काफी अधिक होती है।  इस कारण यह आदिकाल से एक मॉइस्चरिसेर के रूप में प्रचलित है।

मॉइस्चराइज़ेशन की प्रक्रिया से ऊपर की मृत त्वचा फटती नहीं है। त्वचा के न फटने से त्वचा का स्वरुप बना रहता है तथा किसी भी प्रकार के संक्रमण से भी सुरक्षा रहती है।

शीत व रूक्ष काल में मॉइस्चराइज़ेशन का मानव संस्कृति में भिन्न भिन्न प्रकार  प्रचलन  रहा है। इसी हेतु के निदानार्थ सोरायसिस में यह व्यथा प्रचलित होने के कारणवश सोरायसिस में मॉइस्चरिज़तिओन का विधान है तथा एलोवेरा का विशेष प्रचलन है। 

Saturday, December 26, 2015

PSORIASIS - some fine points

सोरिऑसिस एक वात प्रधान चर्म  रोग रोग है। जैसा की हम सभी ने देखा और अनुभव किया है इसमें समय - समय पर जब भी मौसम खुश्क होता है तो त्वचा फैट जाती है और एडवांस केसेस में तो इसमें से खून भी निकालता है।  

इस रोग में जो देखा जाए तो त्वचा  की अपने आप को पुनर्जीवित करने की क्षमता और उसके क्षरण की क्षमता में सामंजस्य टूट जाता है। इस के कारण नयी त्वचा इतनी जल्दी नहीं बनती जितनी जल्दी पुरानी त्वचा नष्ट हो जाती है। इस कारण नयी त्वचा नहीं बन पाती है और उसका  रिपेयर मैकेनिज्म फ़ैल हो जाता है। इतना ही नहीं ऐसा बार बार होता है और हर नयी बार पिछले बार से अधिक विकराल होता जाता है। 

आयुर्वेद में इस रोग को वात प्रधान मन गया  है, कारण की क्षरण की प्रक्रिया वात का गुण है। इस में यह भी देखा है कि रोगी का पेट ठीक से साफ़ नहीं होता है। जब - जब कांस्टीपेशन होता है तब - तब यह विकराल हो जाता है। इसका कारण है की कांस्टीपेशन की स्थिति में शरीर में वात का बंधत्व हो जाता है और वह   अपने प्रसारण के गुण के कारण रक्त और लसिका के माध्यम से त्वचा को दूषित कर उसमें विकार उत्पन्न करती है। 
सूर्य की धुप भी इस रोग में गुणकारी है क्यूंकि त्वचा और अस्थि दोनों के लिए विटामिन डी  फायदेमंद माना गया है।  इसी कारण से शायद आयुर्वेद में कालांतर से इस रोग से पीड़ित जनों को धुप में बैठने को कहा जाता था सुबह के समय। 

अधिक के लिए तथा ऑनलाइन परामर्श के लिए - drnitinchaube@gmail.com