Saturday, December 26, 2015

PSORIASIS - some fine points

सोरिऑसिस एक वात प्रधान चर्म  रोग रोग है। जैसा की हम सभी ने देखा और अनुभव किया है इसमें समय - समय पर जब भी मौसम खुश्क होता है तो त्वचा फैट जाती है और एडवांस केसेस में तो इसमें से खून भी निकालता है।  

इस रोग में जो देखा जाए तो त्वचा  की अपने आप को पुनर्जीवित करने की क्षमता और उसके क्षरण की क्षमता में सामंजस्य टूट जाता है। इस के कारण नयी त्वचा इतनी जल्दी नहीं बनती जितनी जल्दी पुरानी त्वचा नष्ट हो जाती है। इस कारण नयी त्वचा नहीं बन पाती है और उसका  रिपेयर मैकेनिज्म फ़ैल हो जाता है। इतना ही नहीं ऐसा बार बार होता है और हर नयी बार पिछले बार से अधिक विकराल होता जाता है। 

आयुर्वेद में इस रोग को वात प्रधान मन गया  है, कारण की क्षरण की प्रक्रिया वात का गुण है। इस में यह भी देखा है कि रोगी का पेट ठीक से साफ़ नहीं होता है। जब - जब कांस्टीपेशन होता है तब - तब यह विकराल हो जाता है। इसका कारण है की कांस्टीपेशन की स्थिति में शरीर में वात का बंधत्व हो जाता है और वह   अपने प्रसारण के गुण के कारण रक्त और लसिका के माध्यम से त्वचा को दूषित कर उसमें विकार उत्पन्न करती है। 
सूर्य की धुप भी इस रोग में गुणकारी है क्यूंकि त्वचा और अस्थि दोनों के लिए विटामिन डी  फायदेमंद माना गया है।  इसी कारण से शायद आयुर्वेद में कालांतर से इस रोग से पीड़ित जनों को धुप में बैठने को कहा जाता था सुबह के समय। 

अधिक के लिए तथा ऑनलाइन परामर्श के लिए - drnitinchaube@gmail.com

No comments: